स्वैच्छिक
🌹🌹🌹🌹 ग़ज़ल 🌹🌹🌹🌹
बुरा बुरा था बुरा ही रहा भला न हुआ।
हज़ार संग तराशा मगर ख़ुदा न हुआ।
नज़र झुकाके पलट आए उसके दर से हम।
सदा ए दिल का असर उसपे जब ज़रा न हुआ।
मलाल क़ल्ब से निकलेगा क्या क़यामत तक।
दर ए ह़बीब पे सजदा अगर अदा न हुआ।
निकल के मौजे तलातुम से आ गया लेकिन।
मैं उसकी ज़ुल्फ़े गिरहगीर से रिहा न हुआ।
नज़र से हमको पिलाता तो कुछ बहक जाते।
तिरी शराब से साक़ी ज़रा नशा न हुआ।
हर एक तीर ने घायल किया मिरे दिल को।
निशाना उसका किसी तौर भी ख़ता न हुआ।
फ़राज़ बिछड़े हुए उसको हो गई मुद्दत।
ख़याल उसका मगर क़ल्ब से जुदा न हुआ।
सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़ मुरादाबाद उ0प्र0।
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Swati chourasia
24-Jun-2022 01:10 AM
बहुत खूब 👌
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Gunjan Kamal
23-Jun-2022 12:53 PM
बेहतरीन अभिव्यक्ति
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Raziya bano
23-Jun-2022 12:27 PM
Nice
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