Add To collaction

उड़ान

उड़ान!

"पापा! पापा! मेरा बारहवीं के  परीक्षा का परिणामपत्र (रिजल्ट) आ गया, मैंने पूरे संस्थान में प्रथम स्थान प्राप्त किया है।" खुशी के मारे चहकते हुए पीहू अपने पापा के सामने जाकर स्थिर रहने का प्रयास करते हुए कहती है। खुशी भी क्यों न होती पूरे साल जो मेहनत किया उसका इतना अच्छा फल मिला भला कोई अपनी खुशी कैसे छिपाए।

"वाह बेटा! हमें आपसे ऐसी ही उम्मीद थी, हमें नाज़ है आपपर।" उसके पापा खुशी से उसके सिर को सहलाते हुए कहते हैं।

"पापा अब हम आगे की पढ़ाई करना चाहते हैं, इसके लिए हमें बाहर जाकर पढ़ाई करनी होगी क्योंकि यहां गांव में बारहवीं के बाद करने के लिए कुछ नही है।" पीहू शान्त होकर अपने पापा से अनुमति मांगती है, पर उसके पापा उसे फटी आँखों देखते रहते हैं, उनकी स्थिति देखकर साफ पता चल रहा था कि वे पीहू के बात से सहमत नही हैं। पीहू का मन यह देखकर रोने जैसा हो जाता है वह अपने आँसुओ को छिपाने की कोशिश करती हुई वहां से चली जाती है।

पीहू का भाई दूर शहर में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है, बड़ी बहन का 2 साल पहले शादी कर दी गयी वह भी पढ़ना चाहती थी पर बारहवीं के बाद उन्हें पढ़ने न दिया गया। उसकी माँ को गुजरे तकरीबन 10 साल हो गया है तब से उसके पिता ने ही उसका लालन पालन किया और पीहू को कभी भी माँ की कमी महसूस न होने दी। पीहू भी खूब मन लगाकर पढ़ाई करती, घर के अन्य काजों में भी वह अव्वल थी, उसका हमेशा से एक सपना था कि वह शिक्षक बने और शिक्षक बनकर समाज को सुधारने का प्रयत्न करें यही उसकी माँ की भी इच्छा थी पर वह उसे 5 साल की छोड़कर ही गुजर गईं। पीहू के पापा ने कभी उनकी कमी का एहसास नही होने दिया पर आज, पीहू जैसे अकेले हो गयी थी, उसे अपने पिता का इस तरह कुछ न कहना बहुत खल रहा था, आज उसे मम्मी की बहुत याद आ रही थी, वह अपने बिस्तर पर तकिये में मुँह छिपाकर रोये जा रही थी, जाने क्यों आँसू बरबस ही उसकी आँखों से उमड़ पड़े थे।

"दीदी! बड़े पापा बुला रहे हैं।" एक नन्ही सी 7 साल बच्ची आकर उसका हाथ पकड़कर उठाते हुए बोलती है, वह उसे झिड़ककर बाहर भेज देती है पर जब उसे अपनी गलती का एहसास होता है तो पश्चाताप से भर जाती है। वह उठकर अपना आँख-मुँह धोकर बाहर के बरामदे में जाती है। बरामदे में उसका बड़ा भाई, पापा और पड़ोस के दो चाचा होते हैं चारों आपस में कुछ बहस कर रहे होते हैं और पीहू को देखकर चुप हो जाते हैं, पापा उसे सोफे पर एक ओर बैठने का इशारा करते हैं।

"ये मैं क्या सुन रहा हूँ बेटा! तुम बाहर जाकर पढ़ाई करना चाहती हो! क्यो?" पड़ोस के एक चाचा बोलते हैं।

"अरे रामदीन भाई! बिटिया को आराम से समझाओ, उत्तेजित होने की आवश्यकता नही है।" पड़ोस के दूसरे चाचा, पहले को समझाते हुए कहते हैं।

"अरे ये बाहर क्यों पढ़ने जाएगी? इतना पढ़ लिया काफी नही है! क्या इसे बाहर के माहौल के बारे में पता नही है? लड़की हो के भी बाहर जाने की बात करती है।" उसका भाई गुस्से से बरसते हुए कहता है।

"पहले बताओ बेटी! बाहर क्यों जाना है?" रामदीन चाचा पूछते हैं।

"मुझे शिक्षिका बनना है, इसके लिए बाहर किसी कॉलेज से पढ़ना पड़ेगा तभी मैं डिग्री ले पाऊंगी, यही मेरा सपना है और कारण भी।" पीहू अपने भाई को अनसुना करते हुए रामदीन का जवाब देती है।

"पर तुम्हे नौकरी क्यों करनी है? क्या मेरी कमाई तुम्हें खाने-खिलाने भर की नही है?" अब तक चुप पापा भी इस बात पर बरस पड़ते हैं।

"इसको बाहर जाना है! अरे बाहर लड़कियों के साथ क्या होता है ये नही जानती तुम?" कटाक्ष करते हुए उसका भाई कहता है, हर एक बात पीहू के मासूम हृदय को चीरे जा रही थी, उसे लग रहा था कि उसने अपने पापा से पूछकर ही गलती कर दी, अब उन्होंने यहां चौपाल बैठा लिया, यहां मेरी सुनेगा भी कौन!

ऊँचे स्वर में बहस सुनकर आसपास की कुछ महिलाएं भी द्वार पर आ गयी और 'क्या हुआ भाई साहब क्या हुआ?' कर पूछने लगी। भाई ने हर बात को बढ़ाचढ़ाकर उन सबके सम्मुख प्रस्तुत किया, पीहू अपने सामने अपने ऊपर हो रहे अन्याय को देखकर चुप थी, उसकी विवशता यह थी कि कोई स्त्री भी उसके दर्द को न समझ सकेगी, वह किसे समझाए? किससे क्या कहें? लोग उसे ही गलत कहेंगे क्योंकि वो लड़की है! क्या बस इसीलिए?

"अरे बिटिया ऐसा नही करते, बाहर कुछ गलत हो गया तो उसका जिम्मेदार कौन होगा?" महिलाएं उसे समझाने का प्रयत्न करने लगी।

"अरे इसको नौकरी करनी है, मेरी कमाई से इसका पेट नही भर रहा है।" पापा आज बहुत गुस्से में थे, पीहू ने उनसे कभी इस व्यवहार की उम्मीद न की थी।

"पता है जो लड़कियां बाहर जाती है अपना चरित्र खो देती हैं हम तो अपने परिवार का मान सम्मान बचाये रखना चाहते हैं।" दूसरे चाचा प्यार से समझाते हुए कहते हैं, हर कोई उसे समझा रहा था कोई प्यार से तो कोई गुस्से से पर कोई ये नही समझ रहा था कि उसने आखिर ऐसी गलती क्या कर दी है जो इतना बड़ा मुद्दा बन गया। बहस काफी देर तक चलती रही, पीहू झुकी नजरों से सबकी राय सुनती रही पर कुछ न बोली। जब सब अपनी अपनी राय सुझाव देकर थक गए तो अपने घर को जाने लगें, इसी बीच पीहू को कई बार अपने प्राण त्यागने का विचार कर चुकी थी पर वह कोई कायर नही थी। अब यह सब बर्दाश्त से बाहर हो चुका था।

"बस हो गया सबका!" खड़ा होते हुए पीहू जोर से चीखी। "मेरा आज रिजल्ट आया मैंने अपने संस्थान में प्रथम स्थान प्राप्त किया, घर आई तो मुझे उम्मीद थी पापा खुश होंगे, मुझे ढेर से दुआएं देंगे लेकिन मिल क्या रहा है मुझे? अरे मैं बाहर नही जा सकती क्योंकि मैं लड़की हूँ? यही कारण है न! तो अब आप बताओ कि लड़की को खतरा किससे है? आवारा लफंगे जानवरों जैसे लड़कों से, जिन्हें सारी रात बाहर घूमने की छूट होती है, जिनके माँ बाप उन्हें अच्छे संस्कार नही दे पाते तो इसमें लड़की की क्या गलती है? माना सुरक्षा के लिए कुछ नियम बना दिए तो क्या लड़की के साथ ज्यादती की जाए? क्या हम अपने सपनों को ऐसे ही बिखर जाने दें!" पीहू के स्वर में जमाने भर का क्रोध था, सब उसे फटी आँखों से देखते हुए सुन रहे थे, किसी मे बोलने का साहस न हुआ।

"और पापा आप! बचपन से हर वो चीज लाकर दिए जो मुझे जरूरी थी, कभी माँ की कमी महसूस न होने दी पर क्या आज माँ होती तो मेरा साथ न देती? मैं ये काम, ये पढ़ाई पैसों के लिए अपने सपनों के लिए करना चाहती हूँ और आपकी ये दौलत ये भी अचल नही है फिर आपके पास मुझे रोकने का क्या कारण है? मैं तो बस कहने को बेटा हूँ, लेकिन लड़की ही हूँ न! यही गलती है न मेरी? भाई तुम! तुम्हारी ही वजह से दीदी की पढ़ाई रोक दी गयी पर तुम तो मजे से शहर में जाकर पढ़ रहे हो न! तुम्हे क्या फर्क पड़ेगा अरे एक पल को लड़की बनकर देखो तो जानोगे कि ये जो हमारे सपने हैं न इनके टूटने का क्या दर्द होता है। पर रहने दो.. तुम्हारे लड़की बनने का भी क्या फायदा तुम जाओ और अपने बाप की दौलत से ऐश करो, ये जो खुद पहले से लड़कियां हैं वे खुद भी महसूस नही कर सकती तो तुमसे तो रत्तीभर उम्मीद करना व्यर्थ है। अगर रखना है न सारे लड़कों को घर में कैद रखो तब किसी लड़की को बाहर निकलने में कोई डर नही होगा, पर कोई ऐसा क्यों करेगा क्योंकि सारे नियम तो हम लड़कियों के लिए ही बनाये गए है।" पीहू का चेहरा गुस्से से लाल था, उसका भाई उठकर उसे थप्पड़ मारने वाला था पर चाचा उसे रोक लेते हैं।

"हम घर की जिम्मेदारियां निभाते हुए पूरी मेहनत करके पढ़ाई करती हैं ताकि अपने सपनो को जी सके पर यहां तो दहलीज़ से बाहर निकलना ही दूभर हो गया, और ये आस-पड़ोस वाले, ये केवल गप्पे लड़ाने या तमाशा देखने आते हैं, मैं अपने जीवन का फैसला किसी ऐसे के हाथों में कैसे सौंप दूं जिनका खुद की ढंग का कोई जीवन नही है! मैं बाहर पढ़ने जाऊंगी, आप मुझे भेजो या न भेजो! मुझे मेरे संस्थान से प्रोत्साहन राशि मिल रही है उसी के सहारे एडमिशन करवा लूंगी और कोई काम करके अपना जीवन चला लूंगी मुझे आपके टुकड़ो पर पलने की आवश्यकता नही है, मैं ये समझ लूंगी कि अब इस दुनिया में मेरा कोई है ही नही! मैं आपसे हमेशा बहुत प्यार करती हूँ पापा आप मेरे हीरो हो, मैं हमेशा आ आपके सिद्धांतों पर चली, बड़ी उम्मीद लेकर आई थी आपके पास पर जब खुद के बेटी की बात आई तो आप इस बार भी पलट गए! पर ये बताओ कि क्या लड़की होना पाप है क्या? बिना स्त्री के इस सृष्टि का क्या अर्थ रह जायेगा?" पीहू के आंखों से आँसू निकल आये थे, उसका दर्द उन आँसुओ के संग बाहर आ रहा था, वहां खड़ा हर कोई स्तब्ध होकर उसकी बात सुन रहा था।

"बात तो इसकी सही है भाई साहब! हमें लड़को में भी ऐसे संस्कार देने होंगे ताकि वे स्त्रियों का सम्मान कर सकें।" पड़ोस के चाचा पीहू का समर्थन करते हैं।

"बिटिया इतना मेहनत की और इसको बस इस वजह से रोकना कि ये लड़की है सरासर गलत है।" रामदीन भी समर्थन करते हैं। अब सबकी बातें बदल गयी, सबका दल बदल गया, उसका भाई वहां से उठकर बाहर चला गया।

"मैं खुद तुम्हारे साथ चलकर किसी अच्छे कॉलेज में एडमिशन दिलवाऊंगा! मुझे माफ़ करना बेटा।" पीहू के पापा लड़खड़ाते कदमों से उसकी ओर आते हुए कहते हैं पीहू उनके पास जाकर उन्हें सम्भाल लेती है।

"मैं आपको कभी गिरने नही दूंगी पापा! हमेशा आपका सहारा बनूँगी।" पीहू नम आँखों से मुस्कुराते हुए कहती है। उसके चेहरे पर अलग चमक थी, सब उसकी तारीफ करते हुए अपने अपने घर को चले गए।

आज एक पंछी समाज के दकियानूसी विचारों के जाले को चीरकर आसमान में अपनी उड़ान भर चुका था, अब उसे अपनी तरह हजारों लाखों पंछियों को आजाद कराकर खुले गगन में उड़ान भरना था।


   12
12 Comments

Shrishti pandey

20-Jan-2022 08:45 PM

Nice

Reply

Sana Khan

05-Dec-2021 08:34 AM

Apne apni soch ko apni kahani me bahut khubsurati se utaara he ۔۔

Reply

Sana Khan

05-Dec-2021 08:27 AM

Good

Reply