Sarfaraz

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स्वैच्छिक

🌹🌹🌹* नग़मा * 🌹🌹🌹

बीत जाए न रुत यूँ ही बरसात की।
क़द्र कुछ तो करो दिल के जज़्बात की।

मौसम ए गुल है ऐसे न तड़पाओ तुम।
पास आओ करम इतना फ़रमाओ तुम।
जाम नज़रों से ऐसा पिला दो मुझे।
भूल जाऊँ गली मैं ख़राबात की।
क़द्र कुछ तो करो दिल के जज़्बात की।

मस्त बूँदों में भीगा हुआ यह बदन।
लग रहा है ह़सीं और भी जानेमन।
आओ बातें करें कुछ मुह़ब्बत की हम।
बीत जाएँ न घड़ियाँ मुलाक़ात की।
क़द्र कुछ तो करो दिल के जज़्बात की।

शर्म इतनी भी अच्छी नहीं बाख़ुदा।
रुख़ से पर्दा हटा दो ह़सीं दिलरुबा।
तुम जो आजाओ नज़दीक पल भर मिरे।
बिगड़ी तक़दीर बन जाए इस रात की।
क़द्र कुछ तो करो दिल के जज़्बात की।

बीत जाए न रुत यूँ ही बरसात की।
क़द्र कुछ तो करो दिल के जज़्बात की।

सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़ मुरादाबाद यू.पी.।

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4 Comments

Pallavi

05-Jul-2022 03:01 PM

बेहतरीन रचना

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Swati chourasia

04-Jul-2022 08:17 AM

बहुत ही सुंदर रचना 👌

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Raziya bano

03-Jul-2022 03:16 PM

Beautiful

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