सागर
निर्मल पुनीत मंतव्य लिए
जयो प्रियतम से मिल जाती है
सागर की बाँहो मे आकर
सरिता जैसे इतराती है
है कार्य कठिन पथ बाधित है
वो उसको भी कर जाती है
हिम खंडो से निज धर
स्वरूप झरनों से थिरकती जाती है
सागर से मिलन की आस
लिए नदिया बहती जाती है
कहीं मचल मचल कहीं उछल
उछल वो आगे बढती जाती है
सागर संयम का स्वामी है
वो संयम बहुत बरतता है
चढ़ मेघों के कंधों पर वो
चहुँ दिशी खूब बरसता है
निज जल अथाह भंडार लिए
मीठी बूंदो को तरसता है
निज स्वरूप का तर्पण कर
स्वय को सागर को अर्पण कर
निज को बिलीन कर लहरों में
सागर को सागर कर जाती है
निर्मल पुनीत मंतव्य लिए
जयो प्रियतम से मिल जाती है
सागर की बाँहो मे आकर
सरिता जैसे इतराती है
उदयबीर सिंह गौर
खम्हौरा
बांदा
उत्तर प्रदेश
9793941034
Seema Priyadarshini sahay
14-Aug-2021 12:21 AM
वाह
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उदय बीर सिंह
14-Aug-2021 12:42 PM
बहुत-बहुत धन्यवाद
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Swati chourasia
13-Aug-2021 10:31 PM
Very nice
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उदय बीर सिंह
14-Aug-2021 12:42 PM
Thankyou
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Dr. SAGHEER AHMAD SIDDIQUI
13-Aug-2021 10:07 PM
Wah
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उदय बीर सिंह
14-Aug-2021 12:41 PM
शुक्रिया
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