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किताब


विषय  किताब

ख़्वाब देखें है बहुत मैंने
ख्वाब बुनना नहीं आया

मैं पढ़ता हूं बस किताबें
चेहरा पढ़ना नहीं आया

अता है तेरी ये दर्द ओ ग़म
ख़ुदग़र्ज़ बनना नहीं आया

शाखों से कांटे भी कुबूल मुझे
सिर्फ गुलाब चुनना नहीं आया

रंग कुदरत के मुझे सारे ही भाते
सब्ज़ या ज़र्द पहनना नहीं आया

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8 Comments

Madhumita

25-Jul-2022 06:34 PM

बहुत ही सुन्दर

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नंदिता राय

25-Jul-2022 04:31 PM

शानदार प्रस्तुति 👌

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Shnaya

25-Jul-2022 03:38 PM

शानदार

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