Sarfaraz

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स्वैच्छिक

🌹🌹🌹🌹नग़मा🌹🌹🌹🌹

फूल से लब पर चमकता हाय यह तिल का निशाँ।
आपसा दूजा नहीं है कोई ऐ जान ए जहाँ।

रुख़ पे है परछाईं प्यारी काकुल ए ख़मदार की।
बुलबुलें क़ायल हैं जानाँ आपकी गुफ़तार की।

आपको जब जब भी देखा दिल हुआ यह शादमाँ।
फूल से लब पर चमकता हाय यह तिल का निशाँ।

नर्मो नाज़ुक जिस्म पर यह ज़ाफ़रानी पैराहन।
लग रही हो आप जानाँ शमस की पहली किरन।

रंगो बू से आपके सरशार है दिल का मकाँ।
फूल से लब पर चमकता हाय यह तिल का निशाँ।

जानेमन जान ए तमन्ना ऐ मिरी जान ए ग़ज़ल।
आपकी राअ़नाईयों से खिलता है दिल का कमल।

हर घड़ी लब पर है मेरे आप ही की दास्ताँ।
फूल से लब पर चमकता हाय यह तिल का निशाँ।

फूल से रुख़ पर चमकता हाय यह तिल का निशाँ।
आपसा दूजा नहीं है कोई ऐ जान ए जहाँ।

सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़ पीपलसाना मुरादाबाद।

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13 Comments

Seema Priyadarshini sahay

29-Jul-2022 05:33 PM

Nice post

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Rahman

28-Jul-2022 10:56 PM

Osm

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Saba Rahman

28-Jul-2022 09:17 PM

Nice

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