कहर
मैं तो समझा कि ये रब का कहर है
मगर यार, तिरे मिरे लहज़े में ही ज़हर है।
सियासत वो कर रहें हैं, महलों में बैठे
दिखता किसे, जल रहा मेरा शहर है।
उजड़ गई तू-तू मैं-मैं में प्रेम की बगिया
गैरों की झंझावत में टूटता, अपनो का घर है।
दुहाई दे देकर थक जाओगे, इन्सानियत की
अरे वो मर चुकी, अब तो बस दौलत अमर है।
रुक जा 'मन' कुछ भी नहीं कर रहा ऊपरवाला
ये सब तो नीचें वालों के ही, किए का असर है।
#MJ
#प्रतियोगिता
©मनोज कुमार "MJ"
Dr. SAGHEER AHMAD SIDDIQUI
07-Aug-2021 02:18 PM
Khubsurat
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Niraj Pandey
07-Aug-2021 01:20 PM
लाजवाब👌👌
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Nitish bhardwaj
07-Aug-2021 12:48 PM
वाह बहुत खूब
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मनोज कुमार "MJ"
08-Aug-2021 06:23 AM
Thank you
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