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यक़ीन




यक़ीन तो यही है के काजल हो जाएंगे,
और न हुए तो हम फिर जल थल हो जाएंगे।

मैं लिखते लिखते हुशियार हो जाऊँगा,
मुझको ये पढ़ने वाले सब पागल हो जाएंगे।

जो आज आज तुझको मयस्सर है हम,
एक दिन होगा कि हम भी कल हो जाएंगे।

आप गर इस तरह से ज़ुल्फ़ें खोलेंगे तो,
महफ़िल में सबके सब पागल हो जाएंगे।

देखे है ख़्वाब इसी उम्मीद में 'तनहा',
कभी तो होगा कि सब मुक़म्मल हो जाएंगे।

तारिक़ अज़ीम 'तनहा"

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4 Comments

MR SID

05-Aug-2022 10:01 PM

Nice

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Raziya bano

05-Aug-2022 08:19 PM

Bahut khub

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Mukesh Duhan

05-Aug-2022 06:54 PM

Nice ji sir

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