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गज़ल

मुझे मेरे मुहब्बत का यही अंज़ाम दे दीजे।
कि  अपने साथ रख कर इक महकती शाम दे दीजे।

बहुत तड़पा है बस इक आपको पाने की खातिर वो..
गले लगकर मेरे दिल को जरा आराम दे दीजे।

परिंदा हूंँ तो उड़ने का भी ज़िद रखना मुनासिब है।
धरा पर  चांँद लाने का मुझे ही काम दे दीजे।

किया महसूस हूंँ मैं आपकी कुरबत को हर लम्हा।
ख़यालों को हकीक़त का नया ईनाम दे दीजे।

मुहब्बत जब इबादत है सदाकत की हिफ़ाज़त है।
सियासत या तिज़ारत हो तो हाथों ज़ाम दे दीजे।

कि जिसके 'तू' से भी बस आपकी खुशबू महक उठ्ठे।
वही शायर है दुनियांँ को सही पैगाम दे दीजे।

©® दीपक झा "रूद्रा"

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10 Comments

Hayeee.... Ek baar fir aapne lazwab likh diya 👏💐

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शुक्रिया ले लीजे ,इनायत दे दिजे

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Pankaj Pandey

22-Aug-2022 03:00 PM

Bahut achhi rachana

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Seema Priyadarshini sahay

22-Aug-2022 08:34 AM

बहुत खूबसूरत

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