पिता

पिता


वो पुरुष पहले फिर पिता भी है

कैसे दिखाए प्रेम उसका समर्पण

कोमल भावनाएं नहीं उसके लिए

उसका जीवन दुनिया का दर्पण।


वो चाहे भी तो नरम दिख नहीं सकता

भावनाओं के समंदर में चाह कर भीग नहीं सकता

उसे परिवार की खातिर खुद को पत्थर दिखाना है

आए वक्त कैसा भी कदम नहीं डगमगाना है।


वो अपने लिए नहीं परिवार की खातिर है जीता

खुश रहें घरवाले इसलिए गमों के घूंट है पीता

अपनी नहीं रहती कभी भी परवाह उसको

दिन रात वो सिर्फ अपनों के लिए फना होता।

आभार – नवीन पहल – ११.०९.२०२२ 🙏🙏

# प्रतियोगिता हेतु


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11 Comments

Palak chopra

12-Sep-2022 09:06 PM

Achha likha hai aapne 🌺

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Achha likha hai 💐

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Ajay Tiwari

12-Sep-2022 05:13 PM

Very nice sir

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