Sarfaraz

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स्वैच्छिक

🌹🌹🌹🌹 ग़ज़ल 🌹🌹🌹🌹

कभी गुलनार हम उसको कभी गुलफ़ाम कहते हैं।
ग़ज़ल  उसके  ह़सीं  चेहरे  पे सुब्हो शाम कहते हैं।

सताऐ   कोई   कितना  भी  यही  मादाम कहते हैं।
मुह़ब्बत   करने   वाले   दर्द   को आराम कहते हैं।

जसारत  कैसे  कर  लें हम उसे अपना बनाने की।
हमें  वो  मिल नहीं सकता ये उसके दाम कहते हैं।

सितम  ऐहले  वफ़ा  पर ढाने वाले ग़ौर से सुन ले।
वफ़ा  वाले  तो ज़र्ब ए इ़श्क़ को इनआ़म कहते हैं।

करें  कैसे  भला  हम आशना उनको ह़क़ीक़त से।
हमारी  ह़क़  बयानी को भी जो इल्ज़ाम कहते हैं।

जो नफ़रत को मिटाता है,मुह़ब्बत आ़म करता है।
यहाँ  रहता  है बस ज़िन्दा उसी का नाम कहते हैं।

फ़राज़'उनका नसीबा कैसे सँवरेगा के जो ह़ज़रत।
गली  में   बैठे   रहने   को  ज़रूरी  काम कहते हैं।

सरफ़राज़  हुसैन  फ़राज़' पीपलसाना मुरादाबाद।

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6 Comments

Abhinav ji

22-Sep-2022 08:24 AM

Very nice👍

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Achha likha hai 💐

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नंदिता राय

20-Sep-2022 09:31 PM

बहुत खूब

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