गीत -उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
इस कुटिल संसार में धूमिल हुई सद्भावना
किस तरह से हम करेंगे अँधेरे का सामना।
आस्था का दीप रोया, त्याग का प्रतिबिंब सोया
टूटकर बिखरा कहीं पर, स्वप्न जो मन में सँजोया
रूठकर अपनत्व भागा, जिसे पाया उसे खोया
सत्य-निष्ठा डगमगाई, आँसुओं ने तन भिगोया
तिकड़मों ने यहाँ लेकिन, दूध से मुँह- हाथ धोया
सफलता के फूल छीने, उन्हें माला में पिरोया
बना अपनापन छलावा, व्यर्थ निकली साधना
किस तरह से हम करेंगे, प्रेम की आराधना।
हो रही इतनी मिलावट, घिसावट में भी सजावट
रोग से लाचार हैं जो, काम में उनके रुकावट
खोखलेपन को छिपाकर, बढ़ रही इतनी दिखावट
है नहीं स्पष्ट कुछ भी, बाबुओं की यह लिखावट
और नैतिक मूल्यों में, आ गई ऐसी गिरावट
आज लोगों के मुखोटे में छिपी बैठी बनावट
हुआ कुंठित हाय जीवन, मूर्छित संभावना
किस तरह से हम करेंगे, आज मंगल कामना।
रचनाकार- उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
'कुमुद -निवास' ,बरेली (उत्तर प्रदेश )
मोबा.- 98379 44187
( सर्वाधिकार सुरक्षित)
Pratikhya Priyadarshini
21-Oct-2022 02:33 PM
Bahut khoob 🙏🌺
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Shnaya
21-Oct-2022 11:24 AM
बहुत खूब
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Abhinav ji
21-Oct-2022 09:15 AM
Nice
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