Dr. Vashisth

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इज़हार


जो हश्र मालूम होता इश्क़ का,तेरी कसम हम प्यार ना करते
उल्फत का सिला ऐसा मिलेगा,होता पता तो ऐतबार ना करते


चाहते उसको दिल ही दिल में,चाहत का हम इकरार ना करते 
तड़प जिया की हम सह लेते,पर उनसे यूं इज़हार ना करते


रो लेते हम तनहाई में, दिल को फिर बेकरार ना करते
सबसे छुपाकर रखते दिल को,महफ़िल में इकरार ना करते


तुमको खलेगा यूं रूठना मेरा,होता इल्म तकरार ना करते
तोड़ोगे दिल होता पता,जाहिर  तुमसे असरार ना करते 


सह नहीं पाएगी ये बेरुखी ' अंशु ',होता पता तो इंतजार ना करते
पहले दिन ही हो जाते अलग,चाहत का तुमसे इसरार ना करते

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4 Comments

Raju Ladhroiea

21-Feb-2021 09:07 AM

बहुत बढ़िया अल्फ़ाज़ पिरोए हुए हैं रचना में

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Dr. Vashisth

02-May-2021 06:18 AM

Shukriya aapka 🙏🏻

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Author Pawan saxena

20-Feb-2021 09:06 PM

Hmesha ke tarha aap bilkul alag he likhte dr vashisht . Bohut achcha

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Dr. Vashisth

02-May-2021 06:18 AM

Shukriya aapka 🙏🏻

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