Madhu varma

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लेखनी कहानी - मानें या ना मानें. - डरावनी कहानियाँ

मानें या ना मानें. - डरावनी कहानियाँ

 जी हाँ, यह बात मुझे भी पूरी तरह से बनावटी लग रही है पर बतानेवालों की सुने तो यह एकदम सत्य घटना है। खैर जो भी हो पर यह घटना जिस व्यक्ति के साथ घटी उससे तो मैं नहीं मिला हूँ और मिलता भी कैसे क्योंकि इस घटना को घटे 55-60 साल हो गए हैं। और इस घटना के घटने के 5-6 साल बाद वह व्यक्ति भी प्रभु को प्यारा हो गया था।  

 इस रोचक दैवीय घटना को सुनाने से पहले मैं आप लोगों को बता दूँ कि बतानेवालों की माने तो एक मरा हुआ व्यक्ति लगभग 7-8 घंटों के बाद जीवित हो गया और वह भी उस समय जब उसकी चिता में आग लगाई ही जानेवाली थी। खैर यहाँ तो मैं यह भी कह सकता हूँ कि शायद वह आदमी मरा ही न हो पर लोगों की सुनें तो चिता पर से घर आने के बाद उस व्यक्ति ने जो बातें बताईं उससे सब लोगों को बहुत ही कौतुहल हुआ क्योंकि वह व्यक्ति डंके की चोट पर बताया कि वह सच में मर गया था और उसे यमदूतों ने यम के कहने पर फिर से वापस लाकर छोड़ दिया।  

 आइए इस घटना को विस्तार से सुनते हैं- हमारे गाँव के बगल में एक गाँव है, यह घटना वहीं की है। वहाँ एक पंडितजी थे। लगभग 70 साल के पर एकदम चुस्त-दुरुस्त। एक बार वह अपने घर के दरवाजे पर ही चौकी पर बैठकर घमावन (धूप सेंकना) ले रहे थे। दरअसल बात यह थी की जाड़े का मौसम था और कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। दोपहर का समय हो गया था पर लोगों के शरीर की ठिठुरन जाने का नाम नहीं ले रही थी। अचानक उस पंडितजी के शरीर में एक अजीब जी हलचल हुई और पंडीतजी कुछ समझ पाते या अपने को संभाल पाते इससे पहले ही वह चौकी पर से नीचे लुड़क गए। पास में ही उनकी नातिन खेल रही थी वह दौड़ते हुए घर में गई और अपनी माँ को बुला लाई। फिर तो रोना-चिल्लना शुरू हो गया और देखते ही देखते लगभग पूरा गाँव वहाँ इकट्ठा हो गया।  

 गाँव के कुछ बुजुर्ग लोगों ने पंडितजी के शरीर की जाँच-पड़ताल की और उन्होंने देखा कि पंडीतजी तो एकदम ठंडे हो गए हैं और उनकी इहलीली समाप्त हो चुकी है। अब लोगों ने उनके अंतिम क्रिया की तैयारी शुरू कर दी। विमान के लिए बाँस कटवाकर मँगाया गया, गाँव के लोगों ने अपने-अपने घर से जलावन (लकड़ी, गोहरा आदि) निकाला और दो बैलगाड़ियों पर जलावन को लादा गया। ये सब करने में लगभग शाम हो गई और अब पंडितजी की अर्थी को लेकर लोग नदी किनारे गए। ठंडक का मौसम होने के कारण सब लोग जल्दी-जल्दी चिता साजने लगे। बैलगाड़ियों पर से लकड़ी आदि को उतार कर चिता सजाई गई।  

 फिर इस चिता पर पंडितजी की लाश को रखा गया। फिर कुछ लकड़ियाँ आदि रखकर घी, घूप आदि डाला गया और इसके बाद उस पंडितजी के बड़े लड़के ने ज्यों ही परिक्रमा करके चिता में आग लगाने के लिए झुके तभी चिता में थोड़ी हलचल हुई। काफी लोग तो डर के चिता से काफी दूर भाग गए पर पंडितजी के बड़े लड़के डरे नहीं, हाँ यह अलग बात थी कि उनके भी रोएँ खड़े हो गए थे।  

 उन्होंने थोड़ी हिम्मत दिखाई और लाश के मुख, सिर पर से लकड़ी आदि को हटाई। अरे यह क्या लाश का चेहरा तो एकदम लाल और पसीने से तर था और अब साथ ही लाश की पलकें भी उठ-गिर रहीं थी। अब पंडितजी के बड़े लड़के वहीं से चिल्लाए कि आप लोग डरिए मत और चिता के पास वापस आइए, पिताजी जिंदा हैं पर लोग उनकी कहाँ सुननेवाले थे कुछ लोग तो घबराकर और दूर भाग गए क्योंकि उनको लगा कि पंडित का भूत आ गया है। कुछ लोगों ने तो पंडितजी के बड़े लड़के से कहा कि आप भी दूर हो जाइए पता नहीं कौन सी अनहोनी घट जाए पर पंडितजी के बड़े लड़के वहीं डटे रहे और एक-एककर लाश के ऊपर की सारी लकड़ियों आदि को उतारा और इसके बाद अपने पिताजी को भी अच्छी तरह से पकड़कर चिता से नीचे उतारकर वहीं नीचे सुला दिया और इसके बाद दौड़कर जाकर नदी में से एक अँजली पानी लाकर उनके मुँह में डाल दिया।  

 अब धीरे-धीरे लोगों का डर कुछ कम हो रहा था और एक-एक कर के डरे-सहमे हुए लोग फिर से चिता के पास इकट्ठा होने लगे। अब पंडितजी भी थोड़े सामान्य हो चुके थे उन्होंने धीमी आवाज में अपने बड़े बेटे से कि हमें घर ले चलो। अब फिर से उस पंडितजी को बैलगाड़ी में सुलाकर घर लाया गया। फिर एक छोलाछाप डाक्टर को ही बुलाकर बोतल चढ़वाया गया। 2-3 दिन के बाद फिर से पंडितजी एकदम भले-चंगे यानि पहले जैसे हो गए। यह बात अब तो पूरे जवार में फैल चुकी थी कि फलाँ गाँव के फलाँ बाबा मरकर जिंदा हो गए। वे चिता पर उठकर घर आए। रिस्तेदारों आदि के साथ ही बहुत सारे लोग भी दूर-दूर से उस बाबा के पास आते थे और कौतुहल से उन्हें देखते थे।  

 इस घटना के घटने के लगभग 8-10 दिन बाद कुछ लोग पंडितजी के दरवाजे पर बैठकर इसी घटना की जिक्र कर रहे थे। कोई कह रहा था कि बाबा मरे नहीं थे अपितु उनका प्राण छिप गया था और 7-8 घंटे बाद फिर वापस आ गया पर कुछ लोग मानने को तैयार ही नहीं थे उनका कहना था कि उनलोगों ने खुद ही बाबा की जांच-पड़ताल की थी और बाबा एकदम ठंडे और पीले हो गए थे। अभी उन लोगों की यह बात चल ही रही थी कि बाबा घर में से बाहर निकले और बोल पड़े कि वास्तव में वे मर गए थे। बाबा की यह बात कुछ लोगों को मजाक लगी पर बाबा ने जोर देकर यह बात कही।  

 फिर बाबा ने उस घटना का जिक्र कुछ इस प्रकार से किया- उस दिन चौकी पर बैठे-बैठे अचानक पता नहीं क्यों मेरे साथ क्या हुआ कि मैं चौकी पर से नीचे गिर गया और चौकी पर से नीचे गिरने के बाद मेरे साथ क्या हुआ यह मुझे पता नहीं चला। हाँ पर कुछ समय बाद मुझे अचानक लगा कि मुझे कुछ लोग उठाए ले जा रहे हैं। वे लोग वापस में कुछ बात भी कर रहे थे। पर मेरी आँखे बंद थी अब मैंने धीरे-धीरे प्रयास करके अपनी आँखें खोली तो क्या देखता हूँ कि मैं 2-3 लोगों के साथ उड़ा जा रहा हूँ। हाँ पर वे लोग कौन थे यह मुझे पता नहीं। वे लोग देखने में थोड़े अजीब लग रहे थे और उनका पहनावा भी थोड़ा अलग ही था। और हाँ मुझे अब डर नहीं लग रहा था और ना ही मैं यह समझ रहा था कि मैं मर गया हूँ। मैं तो वस उन लोगों के साथ उड़ा जा रहा था। हाँ यहाँ एक बात और स्पष्ट कर दूँ कि मुझे लेकर जो 2-3 लोग जा रहे थे उनके चेहरे भी अब मुझे बहुत स्पष्ट नहीं हो रहे हैं। आगे बाबा ने बताया कि कुछ ही मिनटों में वे एक दरबार में हाजिर हुए। लगता था कि किसी राजा का दरबार है। बहुत सारे लोग बैठे हुए थे।  

 वहाँ एक लंबा टीकाधारी भी बैठा हुआ था। उसके हाथ में कोई पोथी थी। अब क्या मुझे देखते ही वह टीकाधारी राजगड्डी पर बैठे एक बहुत ही विशालकाय व्यक्ति से कुछ कहा। इसके बाद उस विशालकाय व्यक्ति और उस टीकाधारी में में 2-3 मिनट तक कुछ बातें हुई फिर कुछ और लोगों को बुलाया गया और उन्हें मेरे साथ लगा दिया गया। अब क्या फिर से मुझे लेकर वे लोग दरबार से बाहर निकले। हाँ इस दौरान मैंने एक जो विशेष बात देखी वह यह थी कि उस राजदरबार में जितने भी लोग दिखे उन सबका एक आकार तो था पर वे हवा जैसे लग रहे थे मतलब हाड़-मांस के नहीं अपितु हवा आदि से बने हों। अब मुझे लेकर ये लगभग 8-10 लोग जल्दी-जल्दी एक दिशा की ओर बढ़ने लगे, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था और ना ही मैं बोल पा रहा था पर हाँ मैं इन लोगों के साथ उड़ा जा रहा था। धीरे-धीरे ये लोग अलग-अलग दिशाओं में बँटने लगे और अब मेरे साथ केवल एक ही आदमी था और वह मुझे लेकर पहले घर पर आया और बहुत परेशान दिखने लगा तभी क्या हुआ कि उसके जैसा दिखनेवाला ही एक दूसरा आदमी वहाँ प्रकट हुआ और मुझे लेकर चिता के पास आया। हाँ चिता के पास आने तक तो मैं संज्ञान था पर उसके बाद क्या हुआ मुझे पता नहीं और बाद में मैं जाग पड़ा और मुझे अजीब लगा कि मुझे यहाँ (चिता) क्यों लाया गया है। बाबा ने आगे कहा कि उन्हें लगा कि उस राजदरबार में वह टीकाधारी उस विशालकाय व्यक्ति से कह रहा है कि इसे क्यों लाया गया, किसी और को लाना था। खैर जो भी यह घटना सही हो या गलत पर उस पंडितजी (बाबा) को जाननेवाला हर व्यक्ति यही कहता था कि यह घटना बिलकुल सही है क्योंकि बाबा कभी-कभी झूठ नहीं बोलते थे और अपने वसूलों के बहुत पक्के थे। इस घटना के 5-6 साल बाद तक बाबा जिंदा रहे और अपनी इन यादों को लोगों को सुनाते रहे। हाँ यहाँ एक बात और बता दूँ कि फिर से जिन्दा होने के बाद बाबा के जीवन में बहुत सारे बदलाव आ गये थे। इस घटना के बाद किसी ने भी बाबा को न गुस्सा करते देखा न बीमार पड़ते। बाबा का जीवन एकदम बदला-बदला लग रहा था। वे अपने से मिलने आनेवालों से बहुत प्रेम से मिलते थे।

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