Madhu varma

Add To collaction

लेखनी कविता - मैं न चुप हूँ न गाता हूँ -अटल बिहारी वाजपेयी

मैं न चुप हूँ न गाता हूँ -अटल बिहारी वाजपेयी 

न मैं चुप हूँ न गाता हूँ 

 सवेरा है मगर पूरब दिशा में 
 घिर रहे बादल 
 रूई से धुंधलके में 
 मील के पत्थर पड़े घायल 
 ठिठके पाँव 
 ओझल गाँव 
 जड़ता है न गतिमयता 

 स्वयं को दूसरों की दृष्टि से 
 मैं देख पाता हूं 
 न मैं चुप हूँ न गाता हूँ 

 समय की सदर साँसों ने 
 चिनारों को झुलस डाला, 
मगर हिमपात को देती 
 चुनौती एक दुर्ममाला, 

बिखरे नीड़, 
विहँसे चीड़, 
आँसू हैं न मुस्कानें, 
हिमानी झील के तट पर 
 अकेला गुनगुनाता हूँ। 
 न मैं चुप हूँ न गाता हूँ

   0
0 Comments