Madhu varma

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लेखनी कविता -समुद्र का पानी -रामधारी सिंह दिनकर

समुद्र का पानी -रामधारी सिंह दिनकर

बहुत दूर पर
 अट्टहास कर
 सागर हँसता है।
 दशन फेन के,
अधर व्योम के।

 ऐसे में सुन्दरी ! बेचने तू क्या निकली है,
अस्त-व्यस्त, झेलती हवाओं के झकोर
 सुकुमार वक्ष के फूलों पर ?

सरकार !
और कुछ नहीं,
बेचती हूँ समुद्र का पानी।
 तेरे तन की श्यामता नील दर्पण-सी है,
श्यामे ! तूने शोणित में है क्या मिला लिया ?

सरकार !
और कुछ नहीं,
रक्त में है समुद्र का पानी।

 माँ ! ये तो खारे आँसू हैं,
ये तुझको मिले कहाँ से ?

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