Madhu varma

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लेखनी कविता - तम में बनकर दीप -महादेवी वर्मा

तम में बनकर दीप -महादेवी वर्मा 


उर तिमिरमय घर तिमिरमय
 चल सजनि दीपक बार ले!

राह में रो रो गये हैं
 रात और विहान तेरे
 काँच से टूटे पड़े यह
 स्वप्न, भूलें, मान तेरे;
फूलप्रिय पथ शूलमय
 पलकें बिछा सुकुमार ले!

तृषित जीवन में घिर घन-
बन; उड़े जो श्वास उर से;
पलक-सीपी में हुए मुक्ता
 सुकोमल और बरसे;
मिट रहे नित धूलि में
 तू गूँथ इनका हार ले !

मिलन वेला में अलस तू
 सो गयी कुछ जाग कर जब,
फिर गया वह, स्वप्न में
 मुस्कान अपनी आँक कर तब।
 आ रही प्रतिध्वनि वही फिर
 नींद का उपहार ले !
चल सजनि दीपक बार ले ! 


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