Madhu varma

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लेखनी कविता -हे चिर महान्! -महादेवी वर्मा

हे चिर महान्! -महादेवी वर्मा 


हे चिर महान्!
महादेवी वर्मा
 हे चिर महान्!

यह स्वर्ण रश्मि छू श्वेत भाल,
बरसा जाती रंगीन हास;
सेली बनता है इन्द्रधनुष
 परिमल मल मल जाता बतास!
पर रागहीन तू हिमनिधान!

नभ में गर्वित झुकता न शीश
 पर अंक लिये है दीन क्षार;
मन गल जाता नत विश्व देख,
तन सह लेता है कुलिश-भार!
कितने मृदु, कितने कठिन प्राण!

टूटी है कब तेरी समाधि,
झंझा लौटे शत हार-हार;
बह चला दृगों से किन्तु नीर
 सुनकर जलते कण की पुकार!
सुख से विरक्त दुख में समान!

मेरे जीवन का आज मूक
 तेरी छाया से हो मिलाप,
तन तेरी साधकता छू ले,
मन ले करुणा की थाह नाप!
उर में पावस दृग में विहान! 


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