Madhu varma

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लेखनी कविता -तेरी सुधि बिन -महादेवी वर्मा

तेरी सुधि बिन -महादेवी वर्मा 


तेरी सुधि बिन क्षण क्षण सूना।

 कम्पित कम्पित,
पुलकित पुलकित,
परछा‌ईं मेरी से चित्रित,
रहने दो रज का मंजु मुकुर,
इस बिन शृंगार-सदन सूना!
तेरी सुधि बिन क्षण क्षण सूना।

 सपने औ' स्मित,
जिसमें अंकित,
सुख दुख के डोरों से निर्मित;
अपनेपन की अवगुणठन बिन
 मेरा अपलक आनन सूना!
तेरी सुधि बिन क्षण क्षण सूना।

 जिनका चुम्बन
 चौंकाता मन,
बेसुधपन में भरता जीवन,
भूलों के शूलों बिन नूतन,
उर का कुसुमित उपवन सूना!
तेरी सुधि बिन क्षण क्षण सूना।

 दृग-पुलिनों पर
 हिम से मृदुतर,
करूणा की लहरों में बह कर,
जो आ जाते मोती, उन बिन,
नवनिधियोंमय जीवन सूना!
तेरी सुधि बिन क्षण क्षण सूना।

 जिसका रोदन,
जिसकी किलकन,
मुखरित कर देते सूनापन,
इन मिलन-विरह-शिशु‌ओं के बिन
 विस्तृत जग का आँगन सूना!
तेरी सुधि बिन क्षण क्षण सूना।

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