Madhu varma

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लेखनी कविता -ऐ री सखी मोरे पिया घर आए -अमीर ख़ुसरो

ऐ री सखी मोरे पिया घर आए -अमीर ख़ुसरो 


ऐ री सखी मोरे पिया घर आए, 
भाग लगे इस आँगन को।
 बल-बल जाऊँ मैं अपने पिया के, चरन लगायो निर्धन को।
 मैं तो खड़ी थी आस लगाए, मेंहदी कजरा माँग सजाए।
 देख सूरतिया अपने पिया की, हार गई मैं तन मन को।
 जिसका पिया संग बीते सावन, उस दुल्हन की रैन सुहागन।
 जिस सावन में पिया घर नाहिं, आग लगे उस सावन को।
 अपने पिया को मैं किस विध पाऊँ, लाज की मारी मैं तो डूबी डूबी जाऊँ।
 तुम ही जतन करो ऐ री सखी री, मै मन भाऊँ साजन को।

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