लेखनी कविता -परदेसी बालम धन अकेली मेरा बिदेसी घर आवना -अमीर ख़ुसरो
परदेसी बालम धन अकेली मेरा बिदेसी घर आवना -अमीर ख़ुसरो
परदेसी बालम धन अकेली मेरा बिदेसी घर आवना।
बिर का दुख बहुत कठिन है प्रीतम अब आजावना।
इस पार जमुना उस पार गंगा बीच चंदन का पेड़ ना।
इस पेड़ ऊपर कागा बोले कागा का बचन सुहावना।