Madhu varma

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लेखनी कविता - छाप तिलक सब छीन्हीं रे -अमीर ख़ुसरो

छाप तिलक सब छीन्हीं रे -अमीर ख़ुसरो 


अपनी छबि बनाई के जो मैं पी के पास गई,
जब छबि देखी पी की तो अपनी भूल गई।
 छाप तिलक सब छीन्हीं रे मोसे नैंना मिलाई के
 बात अघम कह दीन्हीं रे मोसे नैंना मिला के।
 बलि बलि जाऊँ मैं तोरे रंग रजवा,
अपनी सी रंग दीन्हीं रे मोसे नैंना मिलाई के।
 प्रेम भटी का मदवा पिलाय के, 
मतवारी कर दीन्हीं रे मोसे नैंना मिलाई के।
 गोरी गोरी बहियाँ हरी हरी चूरियाँ
 बइयाँ पकर हर लीन्हीं रे मोसे नैंना मिलाई के।
 खुसरो निजाम के बलि-बलि जाइए
 मोहे सुहागन किन्हीं रे मोसे नैंना मिलाई के।
 ऐ री सखी मैं तोसे कहूँ, मैं तोसे कहूँ, छाप तिलक....।

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