Madhu varma

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लेखनी कविता - मेरा गीत दिया बन जाए -गोपालदास नीरज

मेरा गीत दिया बन जाए -गोपालदास नीरज 

अंधियारा जिससे शरमाये,
उजियारा जिसको ललचाये,
ऎसा दे दो दर्द मुझे तुम
 मेरा गीत दिया बन जाये!

इतने छलको अश्रु थके हर
 राहगीर के चरण धो सकूं,
इतना निर्धन करो कि हर
 दरवाज़े पर सर्वस्व खो सकूं

 ऎसी पीर भरो प्राणों में
 नींद न आये जनम-जनम तक,
इतनी सुध-बुध हरो कि
 सांवरिया खुद बांसुरिया बन जायें!

ऎसा दे दो दर्द मुझे तुम
 मेरा गीत दिया बन जाये!!

घटे न जब अंधियार, करे
 तब जलकर मेरी चिता उजेला,
पहला शव मेरा हो जब
 निकले मिटने वालों का मेला

 पहले मेरा कफ़न पताका
 बन फहरे जब क्रान्ति पुकारे,
पहले मेरा प्यार उठे जब
 असमय मृत्यु प्रिया बन जाये!

ऎसा दे दो दर्द मुझे तुम
 मेरा गीत दिया बन जाये!!

मुरझा न पाये फसल न कोई
 ऎसी खाद बने इस तन की,
किसी न घर दीपक बुझ पाये
 ऎसी जलन जले इस मन की

 भूखी सोये रात न कोई
 प्यासी जागे सुबह न कोई,
स्वर बरसे सावन आ जाये
 रक्त गिरे, गेहूं उग आये!

ऎसा दे दो दर्द मुझे तुम
 मेरा गीत दिया बन जाये!!

बहे पसीना जहां, वहां
 हरयाने लगे नई हरियाली,
गीत जहां गा आय, वहां
 छा जाय सूरज की उजियाली

 हंस दे मेरा प्यार जहां
 मुसका दे मेरी मानव-ममता
 चन्दन हर मिट्टी हो जाय
 नन्दन हर बगिया बन जाये।

 ऎसा दे दो दर्द मुझे तुम
 मेरा गीत दिया बन जाये!!

उनकी लाठी बने लेखनी
 जो डगमगा रहे राहों पर,
हृदय बने उनका सिंघासन
 देश उठाये जो बाहों पर

 श्रम के कारण चूम आई
 वह धूल करे मस्तक का टीका,
काव्य बने वह कर्म, कल्पना-
से जो पूर्व क्रिया बन जाये!

ऎसा दे दो दर्द मुझे तुम
 मेरा गीत दिया बन जाये!!

मुझे श्राप लग जाये, न दौङूं
 जो असहाय पुकारों पर मैं,
आंखे ही बुझ जायें, बेबेसी
 देखूं अगर बहारों पर मैं

 टूटे मेरे हांथ न यदि यह
 उठा सकें गिरने वालों को
 मेरा गाना पाप अगर
 मेरे होते मानव मर जाय!

ऎसा दे दो दर्द मुझे तुम
 मेरा गीत दिया बन जाये!!

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