Madhu varma

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लेखनी कविता - कथनी-करणी का अंग -कबीर

कथनी-करणी का अंग -कबीर 


जैसी मुख तैं नीकसै, तैसी चालै चाल।
 पारब्रह्म नेड़ा रहै, पल में करै निहाल॥

 पद गाए मन हरषियां, साँखी कह्यां अनंद।
 सो तत नांव न जाणियां, गल में पड़िया फंद॥

 मैं जाण्यूं पढिबौ भलो, पढ़बा थैं भलौ जोग।
 राम-नाम सूं प्रीति करि, भल भल नींदौ लोग॥

'कबीर'पढ़िबो दूरि करि, पुस्तक देइ बहाई।
 बावन आखर सोधि करि, 'ररै''ममै' चित्त लाई॥

 पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय।
 ढ़ाई आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंडित होइ॥

 करता दीसै कीरतन, ऊँचा करि-करि तुंड।
 जानें-बूझै कुछ नहीं, यौं हीं आंधा रूंड॥

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