Madhu varma

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लेखनी कविता - काहे री नलिनी तू कुमिलानी -कबीर

काहे री नलिनी तू कुमिलानी।

तेरे ही नालि सरोवर पानी॥
जल में उतपति जल में बास, जल में नलिनी तोर निवास।
ना तलि तपति न ऊपरि आगि, तोर हेतु कहु कासनि लागि॥
कहे 'कबीर जे उदकि समान, ते नहिं मुए हमारे जान।

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