Madhu varma

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लेखनी कविता - अपना अहवाल-ए-दिल-ए-ज़ार कहूँ - ग़ालिब

अपना अहवाल-ए-दिल-ए-ज़ार कहूँ / ग़ालिब


ये न थी हमारी क़िस्मत के विसाले यार [1]होता
अगर और जीते रहते यही इन्तज़ार होता

शब्दार्थ:
[1]प्रिय से मिलन

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