Madhu varma

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लेखनी कविता -ज़हर-ए-ग़म कर चुका था मेरा काम - ग़ालिब

ज़हर-ए-ग़म कर चुका था मेरा काम / ग़ालिब


न होगा यक बयाबाँ माँदगी से ज़ौक़ कम मेरा
हुबाब-ए-मौज-ए-रफ़्तार है, नक़्श-ए-क़दम मेरा

मुहब्बत थी चमन से, लेकिन अब ये बेदिमाग़ी है
के मौज-ए-बू-ए-गुल से नाक में आता है दम मेरा

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