लेखनी कविता -ज़हर-ए-ग़म कर चुका था मेरा काम - ग़ालिब
ज़हर-ए-ग़म कर चुका था मेरा काम / ग़ालिब
न होगा यक बयाबाँ माँदगी से ज़ौक़ कम मेरा
हुबाब-ए-मौज-ए-रफ़्तार है, नक़्श-ए-क़दम मेरा
मुहब्बत थी चमन से, लेकिन अब ये बेदिमाग़ी है
के मौज-ए-बू-ए-गुल से नाक में आता है दम मेरा