Madhu varma

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लेखनी कविता - क़यामत है कि सुन लैला का दश्त-ए-क़ैस में आना - ग़ालिब

क़यामत है कि सुन लैला का दश्त-ए-क़ैस में आना / ग़ालिब


क़यामत है कि सुन लैला का दश्त-ए-क़ैस में आना
तअज्जुब से वह बोला यूँ भी होता है ज़माने में
 
दिल-ए-नाज़ुक पे उस के रहम आता है मुझे
न कर सरगर्म उस काफ़िर को उल्फ़त आज़माने में

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