Madhu varma

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लेखनी कविता - कोह के हों बार-ए-ख़ातिर गर सदा हो जाइये - ग़ालिब

कोह के हों बार-ए-ख़ातिर गर सदा हो जाइये / ग़ालिब


कोह के हों बार-ए-ख़ातिर गर सदा हो जाइए
बे-तकल्लुफ़ ऐ शरार-ए-जस्ता क्या हो जाइए
 
बैज़ा-आसा नंग-ए-बाल-ओ-पर है ये कुंज-ए-क़फ़स
अज़-सर-ए-नौ ज़िंदगी हो गर रिहा हो जाइए

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वुसअत-ए-मशरब नियाज़-ए-कुल्फ़त-ए-वहशत असद
यक-बयाबाँ साया-ए-बाल-ए-हुमा हो जाइए

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