Madhu varma

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लेखनी कविता -ज़िंदगी अपनी जब इस शक्ल से गुज़री 'ग़ालिब' - ग़ालिब

ज़िंदगी अपनी जब इस शक्ल से गुज़री 'ग़ालिब' / ग़ालिब


ज़िंदगी अपनी जब इस शक्ल से गुज़री
हम भी क्या याद करेंगे कि ख़ुदा रखते थे

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