Madhu varma

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लेखनी कविता - जादा-ए-रह ख़ुर को वक़्त-ए-शाम है तार-ए-शुआ - ग़ालिब

जादा-ए-रह ख़ुर को वक़्त-ए-शाम है तार-ए-शुआ / ग़ालिब


जादा-ए-रह ख़ुर को वक़्त-ए-शाम है तार-ए-शुआ
चर्ख़ वा करता है माह-ए-नौ से आग़ोश-ए-विदा

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