Madhu varma

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लेखनी कविता - न लेवे गर ख़स-ए-जौहर तरावत सबज़-ए-ख़त से - ग़ालिब

न लेवे गर ख़स-ए-जौहर तरावत सबज़-ए-ख़त से / ग़ालिब


न लेवे गर ख़स-ए-जौहर तरावत सब्ज़ा-ए-ख़त से
लगावे ख़ाना-ए-आईना में रू-ए-निगार आतिश

फ़रोग़-ए-हुस्न से होती है हल्ल-ए-मुश्किल-ए-आशिक़
न निकलते शम्अ के पा से निकाले गर न ख़ार आतिश

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