Madhu varma

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लेखनी कविता - पीनस में गुज़रते हैं जो कूचे से वह मेरे - ग़ालिब

पीनस में गुज़रते हैं जो कूचे से वह मेरे / ग़ालिब

पीनस में गुज़रते हैं जो कूचे से वह मेरे
कंधा भी कहारों को बदलने नहीं देते

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