Madhu varma

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लेखनी कविता - वां उस को हौल-ए-दिल है तो यां मैं हूं शरम-सार - ग़ालिब

वां उस को हौल-ए-दिल है तो यां मैं हूं शरम-सार / ग़ालिब


वाँ उस को हौल-ए-दिल है तो याँ मैं हूँ शर्म-सार
यानी ये मेरी आह की तासीर से न हो

अपने को देखता नहीं ज़ौक़-ए-सितम को देख
आईना ता-कि दीदा-ए-नख़चीरर से न हो

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