Madhu varma

Add To collaction

लेखनी कविता - सफ़ा-ए-हैरत-ए-आईना है सामान-ए-ज़ंग आख़िर - ग़ालिब

सफ़ा-ए-हैरत-ए-आईना है सामान-ए-ज़ंग आख़िर / ग़ालिब


सफ़ा-ए-हैरत-ए-आईना है सामान-ए-ज़ंग आख़िर
तग़य्युर आब-ए-बर-जा-मांदा का पाता है रंग आख़िर

न की सामान-ए-ऐश-ओ-जाह ने तदबीर वहशत की
हुआ जाम-ए-ज़मुर्रद भी मुझे दाग़-ए-पलंग आख़िर

   0
0 Comments