Madhu varma

Add To collaction

लेखनी कविता -सितम-कश मस्लहत से हूँ कि ख़ूबाँ तुझ पे आशिक़ हैं - ग़ालिब

सितम-कश मस्लहत से हूँ कि ख़ूबाँ तुझ पे आशिक़ हैं / ग़ालिब


सितम-कश मस्लहत से हूँ कि ख़ूबाँ तुझ पे आशिक़ हैं
तकल्लुफ़ बरतरफ़ मिल जाएगा तुझ सा रक़ीब आख़िर

   0
0 Comments