Madhu varma

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लेखनी कविता - रँगा सियार - बालस्वरूप राही

रँगा सियार / बालस्वरूप राही


गीदड़ एक भाग जंगल से
गया शहर में, बीती शाम।
कहीं रखा था रँग भरा टब,
उसमें जाकर गिरा धड़ाम।
सबने समझ अनोखा प्राणी,
उसको झुक-झुक किया प्रणाम।
बारिश आई रंग धुल गया,
पोल खुल गई, बिगड़ा काम।

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