लेखनी कविता - रँगा सियार - बालस्वरूप राही
रँगा सियार / बालस्वरूप राही
गीदड़ एक भाग जंगल से
गया शहर में, बीती शाम।
कहीं रखा था रँग भरा टब,
उसमें जाकर गिरा धड़ाम।
सबने समझ अनोखा प्राणी,
उसको झुक-झुक किया प्रणाम।
बारिश आई रंग धुल गया,
पोल खुल गई, बिगड़ा काम।