Madhu varma

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लेखनी कविता -डरपोक - बालस्वरूप राही

डरपोक / बालस्वरूप राही


लोहे जैसी पीठ मगर
कछुआ फिर भी नहीं निडर।
गर्दन बाहर करता है,
लेकिन जब भी डरता है,
अपने में खो जाता है,
छोटा-सा हो जाता है।

डरते रहते हैं डरपोक,
वीर बढ़ा करते बेरोक।

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