लेखनी कविता -बापू - बालस्वरूप राही
बापू / बालस्वरूप राही
दो अक्टूबर, तीस जनवरी,
ये दोनों दिन रखना याद।
एक जन्मदिन है बापू का,
दूजा बलि हो जाने का,
दोनों ही दिन प्रण दुहराना
घर-घर जोत जगाने का।
बापू के सपनों का भारत
हम को करना है आबाद।
राजघाट पर जाकर हम को
अपना शीश झुकाना है,
बड़े लोग भूले बापू को
उनकों याद दिलाना है।
जो हैं मुक्त घृणा, से छल से,
वह ही है सचमुच आजाद।