Madhu varma

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लेखनी कविता - अगर बदल न दिया - फ़िराक़ गोरखपुरी

अगर बदल न दिया / फ़िराक़ गोरखपुरी


अगर बदल न दिया आदमी ने दुनियाँ को,
 तो जान लो कि यहाँ आदमी कि खैर नहीं.
हर इन्किलाब के बाद आदमी समझता है,
 कि इसके बाद न फिर लेगी करवटें ये ज़मीं.
बहुत न बेकसी-ए-इश्क़ पर कोई रोये,
 कि हुस्न का भी ज़माने में कोई दोस्त नहीं.
अगर तलाश करें,क्या नहीं है दुनियाँ में,
 जुज़ एक ज़िन्दगी कि तरह ज़िन्दगी कि नहीं.

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