Madhu varma

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लेखनी कविता - गज़ल

गज

दिल जलाया तो अंजाम क्या हुआ मेरा
लिखा है तेज हवाओं ने मर्सिया मेरा

कहीं शरीफ नमाज़ी कहीं फ़रेबी पीर
कबीला मेरा नसब मेरा सिलसिला मेरा

किसी ने जहर कहा है किसी ने शहद कहा
कोई समझ नहीं पाता है जायका मेरा

मैं चाहता था ग़ज़ल आस्मान हो जाये
मगर ज़मीन से चिपका है काफ़िया मेरा

मैं पत्थरों की तरह गूंगे सामईन में था
मुझे सुनाते रहे लोग वाकिया मेरा

उसे खबर है कि मैं हर्फ़-हर्फ़ सूरज हूँ
वो शख्स पढ़ता रहा है लिखा हुआ मेरा

जहाँ पे कुछ भी नहीं है वहाँ बहुत कुछ है
ये कायनात तो है खाली हाशिया मेरा

बुलंदियों के सफर में ये ध्यान आता है
ज़मीन देख रही होगी रास्ता मेरा "

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