Madhu varma

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लेखनी कविता - गज़ल

गज़ल


मौका है इस बार, रोज़ मना त्यौहार, अल्लाह बादशाह 
अपनी है सरकार, सातों दिन इतवार, अल्लाह बादशाह 

तेरी ऊँची ज़ात, लश्कर तेरे साथ, तेरे सौ सौ हाथ 
तू भी है तैयार, हम भी हैं तैयार, अल्लाह बादशाह 

सबकी अपनी फ़ौज, ये मस्ती वो मौज, सब हैं राजा भोज 
शेख, मुग़ल, अंसार, सबकी ज़हनी बीमार, अल्लाह बादशाह 

दिल्ली ता लाहौर, जंगल चारों और, जिसको देखो चोर 
काबुल और कंधार, तोड़ दे ये दीवार, अल्लाह बादशाह 

फर्क न इनके बीच, ये बन्दर वो रीछ, सबकी रस्सी खींच 
सारे हैं मक्कार, सबको ठोकर मार,अल्लाह बादशाह 

पढ़े लिखे बेकार, दर दर हैं फ़नकार, आलिम फ़ाज़िल ख्वार 
जाहिल, ढोर, गंवार, कौम हैं सरदार, अल्लाह बादशाह "

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