लोकगीत
लोकगीत-✍️उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
कोरोना फिरि फैलि रहो है, बाने देखौ केते मारे
काम नाय कछु होय फिरउ तौ, निकरंगे घरि से बहिरारे।
मुँह पै कपड़ा नाय लगाबैं, केते होंय रोड पै ठाड़े
बखरिन मै मन नाय लगत है, घरि से निकरे काम बिगाड़े
जाय किसउ की फसल उखाड़ैं, खेतन कौ बे खूब उजाड़ैं
कोऊ उनसे नाय कछु कहै, बात- बात पै बे मुँह फाड़ैं
समझु न आबै उनै नैकहू, उनके तौ मन एते कारे
काम नाय कछु होय फिरउ तौ, निकरंगे घरि से बहिरारे।
धन्नो की रोबै महतारी, जब उखड़ै बाकी तरकारी
बाकी सुनै नाय अब कोऊ, दइयर लागत हैं अधिकारी
बइयरबानी देबैं गारी, होत खूब है मारा -मारी
डर लागत है उनिके जौंरे, काम करत हैं जो सरकारी
हाय पुलिस की मिली भगति से, जिनने अपुने घरि भरि डारे
काम नाय कछु होय फिरउ तौ, निकरंगे घरि से बहिरारे।
केते बइयर भूखे बइठे, जलैं न उनिके घरि मै चूले
कागद पै सबु काम होत हैं, नेता बादे करिके भूले
रामकली की बटियन मैऊ,काऊ ने है आगि लगाई
बाके कंडा सिगरे जरि गै, मट्टी मै मिलि गयी कमाई
नाजायज जो खूब दबाबै, उनिके आगे केते हारे
काम नाय कछु होय फिरउ तौ, निकरंगे घरि से बहिरारे।
सरकारी स्कूल जो खुलो, बामै मुनिया -बालक पठिबै
होबत नाय पढ़ाई कछुअइ, मास्टरन की अच्छी कटिबै
पपुआ की तौ हियाँ लुगाई, उनिके चक्कर मैं जब आई
भूलि गयी खानो- पीनो सब,लगै न कोई बाय दबाई
कोरोना से डर काहे को, नैन लड़ंगे जब कजरारे
काम नाय कछु होय फिरहु तौ,निकरंगे घरि से बहिरारे।
रचनाकार- ✍️उपमेंद्र सक्सेना एड०
'कुमुद- निवास'
बरेली( उ० प्र०)
मोबा- नं०- 98379 44187
( सर्वाधिकार सुरक्षित)
Renu
27-Dec-2022 09:52 PM
👍👍🌺
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Muskan khan
27-Dec-2022 09:36 PM
Nice
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Sachin dev
27-Dec-2022 09:23 PM
👌👌
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