दोहे
*दोहे*
कवि से ही कविता बनी,कविता ज्ञान-प्रकाश।
ज्ञान-ज्योति से हो सदा, तम-अज्ञान-विनाश।।
उगे सूर्य पश्चिम दिशा, कभी न संभव मीत।
वचन न संत असत्य हो,उगले अग्नि न शीत।।
अपनी संस्कृति विश्व में, है अतुल्य-अनमोल।
'विश्व एक परिवार है', बोले ये ही बोल।।
रंग-मंच यह विश्व है, लीला नाथ अपार।
अभिनय करते जीव सब,जब हो मंच-पुकार।।
रखें समय का ध्यान हम,समय होय बलवान।
ग्रहण सूर्य-शशि पर लगे,इसकी प्रभुता जान।।
सूर्य-चंद्र दें विश्व को,अपनी ज्योति अनंत।
यही नेत्र द्वय सृष्टि के, कहते ज्ञानी - संत।।
जल का संचय सब करें,जल जीवन-आधार।
जल से ही जलवायु का,हो समुचित संचार।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
सीताराम साहू 'निर्मल'
29-Dec-2022 03:59 PM
शानदार प्रस्तुति 👌
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