गीत
गीत(16/14)
शीतल-मंद पवन पुरुवाई,
पुलकित कर दे तन-मन को।
पिया-मिलन की आस लिए हिय,
उर्जित कर दे विरहन को।।
पायल-बिछिया,चूड़ी-कंगन,
सबमें सिहरन सी होती।
मुदित मना गोरी आँसू से,
नहीं दिखे नैना धोती।
दे देती पुरुवाई गति भी,
उसके पग की थिरकन को।
उर्जित कर दे विरहन को।।
पाकर ऊर्जा पुरुवाई से,
अंग-अंग उसका फड़के।
आज मिलेंगे साजन उसके,
सोच,हृदय धक-धक धड़के।
मस्त पवन का झोंका कर दे,
बाँकी उसकी चितवन को।।
उर्जित कर दे विरहन को।।
प्रेमी और प्रेमिका दोनों,
होते आशावान सदा।
पाकर ऊर्जा प्रचुर पवन से,
रहते ऊर्जावान सदा।
देती ऊर्जा पुरुवाई यह,
शिथिल हृदय की धड़कन को।।
उर्जित कर दे विरहन को।।
बहते ही पुरुवाई जग में,
घन नभ में छा जाते हैं।
नन्हीं-नन्हीं घन बूँदों से,
हिय व्याकुल सुख पाते हैं।
पुरुवाई सुलझा है देती,
झट-पट मन की उलझन को।।
उर्जित कर दे विरहन को।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
सीताराम साहू 'निर्मल'
29-Dec-2022 03:58 PM
शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻
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