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गीत

गीत
गीत(16/14)
तुम ही कविता तुम्हीं कल्पना,
तुम्हीं भावना हो मेरी।
मेरे अंदर का कवि बोले,
करे साधना वह तेरी।।

सुर-लय, ताल-छंद सब मेरे,
तुम्हीं बिंब-संकेत बनी।
तुम्हीं लेखनी को गति देती,
जो भावों में रहे सनी।
ले प्रकाश तुमसे ही चंदा,
तम-घन छाँटे बिन देरी।।
     तुम्हीं भावना हो मेरी।।

तुम्हीं पास मेरे हो रहती,
सदा सहारा बन मेरा।
तेरे बिना जगत यह सूना,
लगता भूतों का डेरा।
होती है अनुभूति तुम्हारी,
जब वायु लगाती फेरी।।
     तुम्हीं भावना हो मेरी।।

तुमसे जीवन सँवरा मेरा,
खुशियों का भंडार मिला।
जब भी कविता लिखने बैठूँ,
तेरा ही आधार मिला।
मेरा काव्य-वृक्ष फल देता,
जिमि मीठा फल हो बेरी।।
       तुम्हीं भावना हो मेरी।।

हृदय-भाव में हलचल लाती,
तेरी छवि प्यारी-न्यारी।
मन छू लेता गगन उछल कर,
आती कविता की बारी।
नरम कल्पना की पंखों पर,
चढ़े तूलिका चित्र उकेरी।।
       तुम्हीं भावना हो मेरी।।
                   ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                        9919446372

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4 Comments

Abhilasha deshpande

04-Jan-2023 06:31 PM

Nice

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Sachin dev

04-Jan-2023 04:43 PM

Lajavab 🌺

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Raziya bano

04-Jan-2023 10:53 AM

Nice

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