ईश्वर की कृति श्रेष्ठ अनुपम,
अवयव से सुदृढ़ तन सौष्ठव।
भाव पुंज निज हृदय कुंज,
संचित रखता शौर्य प्रबल।
कहते हैं जीव दृढ़ी उसको,
कष्ट जिसे नहीं होता है।
बाहर से हँसता रहता है,
पर अंदर से मन रोता है।
वेदना उसे भी होती है,
आँसू आँखों में आते हैं।
उन्हें छिपाता रहता है,
ये अनदेखे रह जाते हैं।
संघर्ष सतत हो जीवन मे
निज विवेक संग में रखता
जीवन मूल्यों को निरख कर
शुभ पथ पर आगेबढ़ता
दायित्व जीविका का लेकर
सतत कर्म पथ पर तत्पर
चिंता करता नित स्वजनों की
निज की पीड़ा से हो बेखबर।
सुखी सुरक्षित परिजन हों
उपाय अनेकों करता है।
अधरों पर उनके स्मित देख,
परम शान्ति मन भरता है।
परिवार समाज और देश हित
शौर्य भरा वह प्रहरी है।
पालन करता हैं नियमों का
शिक्षित सभ्य वह शहरी है।
ज़रूरते सबकी पूरी करता,
इससे खुश हो जाता है।
अपने लिये कुछ लेने जाये तो,
खुद को हामिद सा पाता है।
पिंकी बिटिया के लिये फ्राक,
रिंकू के लिये शर्ट ले ता।
पायल पत्नी की टूट गई है,
माँ की दवा के लिये सोचता।
पाई पाई को जोड़ जोड़कर,
सपनों का एक घर बनाता है।
यदि उस घर में न पले प्रेम
तो वह हताश हो जाता है।
रखता अहम श्रेष्ठता का
रिश्तों की गढ़े कहानी है।
कभी मौन तो कभी मुखर।
ये पुरुष नाम का प्राणी है।
स्नेहलता पाण्डेय 'स्नेह'
Priyanka06
09-Jan-2023 05:09 PM
बेहतरीन रचना
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
09-Jan-2023 07:07 AM
Wahhhh wahhhh Outstanding लाजवाब
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Sneh lata pandey
09-Jan-2023 10:11 PM
🙏🙏
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Reena yadav
09-Jan-2023 05:55 AM
Nice 👌
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