Madhu varma

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लेखनी कविता - मैं तैयार नहीं था - भवानीप्रसाद मिश्र

मैं तैयार नहीं था / भवानीप्रसाद मिश्र


मैं तैयार नहीं था सफ़र के लिए

याने सिर्फ़ चड्डी पहने था और बनियान
एकदम निकल पड़ना मुमकिन नहीं था

और वह कोई ऐसा बमबारी
भूचाल या आसमानी सुलतानी का दिन नहीं था
कि भाग रहे हों सड़क पर जैसे-तैसे सब

इसलिए मैंने थोड़ा वक़्त चाहा
कि कपड़े बदल लूँ
रख लूँ साथा में थोड़ा तोशा
मगर जो सफ़र पर चल पड़ने का
आग्रह लेकर आया था
उसने मुझे वक़्त नहीं दिया
और हाथ पकड़कर मेरा
लिए जा रहा है वह
जाने किस लम्बे सफ़र पर
कितने लोगों के बीच से

और मैं शरमा रहा हूँ
कि सफ़र की तैयारी से
नहीं निकल पाया
सिर्फ चड्डी पहने हूँ
और बनियान !

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