Madhu varma

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लेखनी कविता -मेरी आँखों की पुतली में- जयशंकर प्रसाद

मेरी आँखों की पुतली में- जयशंकर प्रसाद


मेरी आँखों की पुतली में
 तू बन कर प्रान समां जा रे !
जिससे कण कण में स्पंदन हों,
मन में मलायानिल चंदन हों,
करुणा का नव अभिनन्दन हों-
वह जीवन गीत सुना जा रे !
 खिंच जाय अधर पर वह रेखा-
 जिसमें अंकित हों मधु लेखा,
 जिसको यह विश्व करे देखा,
 वह स्मिति का चित्र बना जा रे!

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