Madhu varma

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लेखनी कविता - अरे!आ गई है भूली-सी- जयशंकर प्रसाद

अरे!आ गई है भूली-सी- जयशंकर प्रसाद


 अरे! आ गई है भूली- सी-
 यह मधु ऋतु दो दिन को,
 छोटी सी कुटिया मैं रच दू,
 नयी व्यथा-साथिन को!
 वसुधा नीचे ऊपर नभ हो ,
 नीड़ अलग सबसे हो,
 झारखण्ड के चिर पतझड में
 भागो सूखे तिनको!
 आशा से अंकुर झूलेंगे
 पल्लव पुलकित होंगे,
 मेरे किसलय का लघु भव यह,
 आह , खलेगा किन को?
 सिहर भरी कपती आवेंगी
 मलयानिल की लहरें,
 चुम्बन लेकर और जगाकर-
 मानस नयन नलिन को.
 जवा- कुसुम -सी उषा खिलेगी
 मेरी लघु प्राची में,
 हँसी भरे उस अरुण अधर का
 राग रंगेगा दिन को.
 अंधकार का जलधि लांघकर
 आवेंगी शशि- किरणे,
 अंतरिक्ष छिरकेगा कन-कन
 निशि में मधुर तुहिन को.
 एक एकांत सृजन में कोई
 कुछ बाधा मत डालो,
 जो कुछ अपने सुंदर से हैं
 दे देने दो इनको.

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